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उपज है, ऐसा जानना और तिथंच मरै सो शुभ भावनते देव होय, अशुभ भावनतें नारकी होय, कोई सरल भावते मनुष्य होय तथा आर्त-भावनत पशमरि पशु भी होय है,ऐसा जानना और नारकी मर नारकी होता नाही, यह निश्चय है और देत मर देत होताना । रोसे कोई जैसा मरे, तैसा हो उपजै, और कोई मरै, और ही पर्याय में उपज है। ऐसा जिन भगवान ने कहा है और तैरे मत में या कही कि मरै सो ही उपणै। सो पर्याय नय तौ बनें नाहीं। सो तूं ऐसा जानि, कि जो मरै सो हो उपजै। आत्मा ही पर्याय तजि मरण करै है सो ही आत्मा और पर्याय में उपजै है। सोही आत्मा, अनेक पर्याय में मरण करै है। यही आत्मा, अपने भाव प्रमाण शुभाशुभ गति में उपण है। सो रोसे अनन्तकाल भ्रमण करते भया । यही आत्मा मर-या, यही उपज्या, ऐसा जानना । इस नयतें यह वचन सत्य है कि जो मरे सो ही उपजे है। मोक्ष भये पीछे मरता भी नाही, अरु उपजता मी नाही, ऐसा जानना। इति स्थिरवादी का वचन कोई नय करि सत्य बताया ऐसा कथन।।
इति सुदृष्टितरजिसी नामग्रन्थमध्ये एकान्तवादीन के नय वचन असत्य किरा। कोई नय, वचन प्रमाण बताए। जैसे एक अङ्ग तो हस्ती नाही. सर्व मुड़े हैं। अङ्गन का समूह हस्ती है। कोई नय, राक अङ्ग करि सत्य भी है। ऐसा कथन करनेवाला चतुर्थ पर्व समाप्त। ४ ।
इति सन्धि में अनेक मतनि का विचार किया, रोसे अन्य मतन के धर्मार्थो जीव थे तिनको समझाय, अब जिनदेव करि भाषे जोव अजीव तत्त्व तिनका स्वरूप कहिर है। सो मोक्षाभिलाषी जीव होय, सो इन तस्व भेदनकौं सममें। सो जा मोक्ष के निमित्त, तत्त्व भेद जानिए, सो प्रथम मोक्ष का स्वरूप कहूँ हौं।
भो मोक्षाभिलाषी! हो तुम धर्मार्थो हो, तातें प्रथम मोक्ष का स्वरूप सुनौ। पीछे तुम्हारे इस मोक्ष की इच्छा होयगी, तो तुमकौं मोक्ष का मार्ग भी बतावेंगे। कैसा है मोक्ष ? जेते संसार में जनम-मरण, भूख-प्यास, वात-पित्त कुष्टादि रोग-इन अनादि अनेक दुख हैं। तिन सर्व दुस-दोषः-रहित है और अविनाशी, निराकुल, इन्द्रियरहित, सुख का स्थान है और अनुपम सर्व लोकालोकवर्ती पदारथ का जाननहारा, ऐसा केवलज्ञान-सहित भगवान पद, जगत् के पूज्यवे योग्य है। ता मोक्ष कौं इन्द्र, देव, चक्री, गणधर, मुनि, सर्व सदैव ताको वान्छेपूजे हैं। तहां के सुख अखण्ड हैं, अविनाशी हैं, सर्व कर्म मल रहित हैं, निराबाध हैं तिनके सुख का कबहूँ अन्त