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तिर्यश्च मरै, तौ तिर्यच ही उपजै। तामैं भी जैसी जाति का पशु मरै, सो ही जाति का पशु उपजें। हस्थी मरै तो ।
हस्थी उपजें, घोटक (घोड़ा) मरै तो घोटक उपजै इत्यादिक जिस जाति में जैसा मरै सो ही उपजै, अपने स्थान | को नहीं तजै। मनुष्य मर तो मनुष्य उपज, तमें भी राव (राजा) मरै तौ राव उपजै, रंक मरै तो रंक उपणे,
ऐसें जो मरे सो ही उपजै। याके मत का यों रहस्य है। जो चार गति संसार तौ है। परन्तु जैसा मरें तैसा ही उपजै सो अपने मत के पोषनैकों ऐसा शब्द ताके ग्रन्थ में कहें।
राज करता जे मरे, ते फिर राज करयि । मरें भीस्व कण मांगते, ते नर भोख मगांय ।। | ऐसे शब्द करि स्थिरवादी ने अपना मत दृढ़ कर रक्खा है रोसे स्थिरवादी कौं कहिये है भो भाई।
सुनि। तेरा मत प्रत्यक्ष अनेक नयन करि खण्ड्या जाय है। तेरा मत कोई मत ते नाहों मिले, ता असत्य है। प्रत्यक्ष तूं देखि। जो तेरा मत प्रमाण होता तो संसार में मतान्तर भी नहीं होता और कोई काही धर्म सेवन करते ? जब जैसा मरै तैसा ही उपजे तो धर्म के अङ्ग कहा फल करेंगे तातै देखि, अनेक मतवाले कोई तौ नाना तप कर हैं, जप करें हैं, भगवान की पूजा करें हैं। इत्यादिक धर्म अङ्ग सेवनि करि, ऐसा विचार हैं जो हमें धर्मप्रसाद ते कुगति नहीं होय ती भली है 1 धर्म फलतें देवादिक शुभ गति होय है, ताके निमित्त केई धर्मात्मा तौ तीर्थ-यात्रा करें हैं तामैं अनेक धन खर्चनेत खेद सहैं हैं। अनेक घर धन्धा तज, कुटुम्बादि ते मोह तज दूर देशान्तर जांथ हैं । केई परभव सुख कौं माना तप करें हैं, केई परभव सुखकौं वांछित दान देय हैं, केई भगवान के मन्दिर बनावेहैं, केई धर्मफल की भगवान के नाम का सुमरन करें हैं, केई राज, सम्पदा, कुटम्ब, लोक, ! इन्द्रिय सुख, शरीर ममत्व इत्यादि सुख छोड़ि दीक्षा धरि वन मैं ध्यान करि अपने पापनाश किया चाहैं हैं। इत्यादिक अनेक जीव अनेक मतन में अनेक प्रकार धर्म का साधन करते देखिये है। ताते भी भ्राता तेरे मत का रहस्य लेय, तौ सर्व धर्म-सेवन का अभाव होय । तातै तेरा मत कोई मत मैं सम्भावता दीसता नाही, ताते असति है। तूं देखि, जो सर्व संसार ऐसा कहै है, जो धर्म-सेवन करेंगा सो देव पद पावैगा, मनुष्य होय तो बड़े पुण्य का धारी राज-पद पावेगा। सेठ-पद पायेगा। जे पापाचारी दुर्बुद्धि पाप का सेवन करेंगे ते पशु होयंगे।। तहां भख, तृषा, शीत उष्णादिक अनेक दुःख भोगेंगे तथा पाप के करनहारे नरक विर्षे नाना विधि के छेदन