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चाहीं ? तू कहँगा यादि है। तो तेरे मत के आप्त आगम पदार्थ झूठे होंगे। जो तू कहेगा कि मेरे आप्त आगम पदार्थ झूठे नाहीं सत्य है आत्मा
कर्ज के दाम नाहीं मिलेंगे। क्योंकि आत्मा तो क्षणभंगुर है। सो कर्ज देनेवाला कोई रह्या नाहीं । आत्मा नवीन आया।
होने पत्र दोय वर्ष पहिले के हैं सो झूठे होय हैं। तोकूं सो एक शरीर में क्षण-क्षण और और आवे है । सो लेन-देन को तिन्हें ठीक नहीं। तेरे रुपया गये गवाहवाले भी सर्व क्षणभंगुर सो भो गये। उनके तन विषै अन्य अन्य आत्मा या सो उनकी गवाह भी कैसे ठीक नाहीं । तातें गवाह भी झूठी भई । खत मांड्या था सो भी झूठा भया। रुपया गये और तू कहँगा रुपया जायगे ? भले आदमिन की तो गवाह है। अरु मोकों भी भलै प्रकार मितिबार याद है और इनके दोय हजार आये हैं सो मैंने जमा किये हैं। सो मोकों याद है । मेरे कर्ज में सन्देह नाहीं । यामैं सन्देह कहा है ? तो है भाई ! तेरे मत की तू ही विचार देख तेरा मत तेरे ही श्रद्धान करि झूठा भया तो और विवेकी परभव के सुख निमित्त, तेरा क्षणभंगुर मत कैसे अङ्गीकार करेगा ? अरु एक और भी सुन हे भाई! तेरा क्षणिकमत कोई हमारे ही श्रागम करि नाहीं निषेध किया किन्तु और भी संसार विषै जेते तुच्छबुद्धि बालगोपाल हैं तिनकर भी निषेधिये है। देखि, तू किसी बालक से कहै कि हे पुत्र तोकूं कोई दस-बीस दिन की बात यादि है । तौ बालक भी कहै मोकों तौ महीना दो महीना की केई बात यादि हैं। तब बालक कौं कहिए। भाई आत्मा तौ क्षणभंगुर है सो शरीर में छिन छिन में आवै है तो तोकों पहिले की बात कहां से यादि होयगी ? तौ बालक भी कहै या बात झूठ है। मोकूं कहाँ तो दस-बीस बात पाँच-चार महीना की बताऊँ हमको सांचे कहौ। जो कोई आत्मा क्षणभंगुर बतावै है सो झूठ है। बालक भी ऐसा कहे है। सो हे भाई तूं सुनि । देखि बालक अज्ञानी भोरा है वह भी तेरा क्षणिक मत झूठा कहे है। तौ विवेकी कैसे सत्य मान सरधान करें ? और सुन कोई भोला अज्ञानी पशुओं का चरावनहारा गुवाल कोई क्षणिकमति के ढोर चरावे धा सो ढोर के धनी पास जाय कही। तुमारे ढोर चरावतें चारि महीना भये, सो अब मेरी चढ़ी गुवाली देऊ। तब ताकूं ता क्षणिकमति ने कही। हे गुवाल ! आत्मा तो क्षणभंगुर है, शरीर मैं आत्मा छिन छिन और आयें है। सो दोय महोना पहले कौन आत्मा था, तानै गुवाली देनी कही थी सो आत्मा । अब नाहीं अरु गुवाल भी वह नाहीं । तब ऐसी सुनिकें गुवाल ने कही। भो सेठ! ऐसे बड़े आदमी होयकें ऐसी
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