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बन्ध करि परभव कुगति के पात्र भये। तातें भो भव्य ! तूं रोसा जानि। ज्यौ संसार विर्षे जोव अनन्त है जिनकी सत्ता भी भिन्न-भिन्न अनन्त है, ऐसा तु जानि। पापात्मा पाप तो आप करे और फल औरन को लगावै तथा पाप लागै हो नांहीं ऐसा माने। ऐसे जीव हैं तिनका मनोरथ ऐसा है जो पाप नहीं तजिये। ऐसे दुरात्मा पापारम्मी को कुतिगामी जानहु । जे धर्मो हैं तै पुण्य-पाप का फल आपको लागता जानि, पापतें भयखाय, पाप तजि, शुभ उपजावें हैं। तातै भो भव्य ! जो ऐसे नहीं होती तो बड़े-बड़े पण्डित दान, पूजा, तप, संयम, तीर्थ काहेकों करते। तातें है भव्य ! तुं ऐसा जानि, जो करै है सो ही पावै है। जगत् में भी ऐसा ही सर्वजन कहैं हैं "जो करैगा सो भोगगा।" ताते जाका किया कर्म ताही कू लागै है । अरु जब ये बात्मा पाप-पुण्य ते रहित होय है तब परमात्मा होय है। ताहीको परब्रह्म कहिये ताहीको भगवान कहिये। ऐसा दृढ़ जानि दयाभाव सहित प्रवर्तन योग्य है। जगत् जीव अनन्त हैं तिनको सत्ता जुदी-जुदी है। अपने परिणामन के फल करि सुखी-दुखी होय हैं और जाके आप्त आगम पदार्थन विर्षे सर्व जीवनि की एकही सत्ता मानें हैं सो असत्य है, तजने योग्य है। ऐसे सर्व जगत् विषं एक सत्ता सर्व जीवन की माननहारे ताकों समझाय, अतत्व श्रद्धान मिटाय, जिनमाषित तत्व का श्रद्धान कराया। सत्यधर्म के सन्मुख किया।
इति सर्व ओवनि की एक सत्ता माननेहारे एकान्तवादी का भ्रम निवारण सम्पूर्ण ॥१॥ आगे क्षणिकमति का सम्बोधन कहिये है-केई क्षणिकमतवाले आत्मा को क्षणभंगुर समय-समय एक शरीर विर्षे अनेक आत्मा क्षण-क्षण और-और उपजते माने हैं। ताकों समझाइये है। भी भठ्यात्मा क्षतिकवादी मत के धरनहारे! तू आत्मा को क्षणिकस्थाई माने है। एक शरीर विर्षे क्षण-क्षण और-और आत्मा आवते माने है सो हमको यह बड़ा आश्चर्य है। तुम सरीखे बुद्धिमान ऐसे भूलो तो मोरे जीवनकों कहा कहिये । हे विचक्षण ! तुही विचार । वर्ष-दो वर्ष पहले की कोई दस-पांच बात तोकों याद हैं या नाही? तथा पहर दोय पहर की कोई बात तोकों याद है कि नाही? जो तौकों याद होय तो तू ही विचार कि आत्मा क्षणभंगुर नाही ! तथा एक-दो वर्ष पहिले तुने काहकों दस-पांच हजार रुपया कर्ज दिये थे। सो तोकों याद है कि नाहों। तुने
पास ते खत मंडाया था ताप दस-पाँच भले मनुष्यों की गवाह कराई थी। सो तोकों यह बात याद है कि
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