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निर्दोष अरु महासुखी होते । सर्व अविनाशी होते, निर्मल होते, जन्म-मरण रहित होते। जैसे अग्रि आप तापमई है तौ ताकी प्रभा जो शक्ति, सो भी तापमई है तथा जैसे दोपक आप प्रकाशरूप है तो ताकी प्रभा भी प्रकाशमई है । तातें जैसी वस्तु होय तैसी ही ताकी शक्ति होइ । सो तो परमात्मा की शक्ति संसारी जीवनविषै एक भी नहीं दीखती है। हे भाई! तू देखि जो सर्व जीवनि विषै परमात्मा को एक सत्ता तो एक जीव सुख होते सर्व ही जीव सुखी होते और एक दुखी होता तो सर्व जीव दुखी होते। एक जीव का नाश होते सर्व का नाश होता जो हे भाई! सर्व की एक सत्ता होती तो एक जीव की जो अवस्था होती सी सर्व की अवस्था होती। जैसे एक सूर्य को सत्तामईं अनेक किरण अनेक घट-पट व पृथ्वीकों प्रकाशमान किये हैं । सो सूर्य और सूर्य की किरणें तिन दोऊन की एक सत्ता है। सो उस सूर्यसत्ता का प्रकाश पृथ्वीविर्षे जेते बट-पट कंकर पत्थर, जल-थल पवन-पानी, भली-बुरी वस्तु इत्यादिक सर्व पदार्थन को जाथ प्रकाशमान किये है--सर्व को प्रकाश है। सर्व मैं रविप्रभा एक-सी दीखे है । परन्तु जब सूर्य अस्त होय, तब ताके संग ही ताकी शक्ति रूप जो किरण सो भो अस्त होय । क्योंकि इनकी सत्ता एक है। तातें सूर्य अस्त होतें किरण भो अस्त भई अरु किरण जस्त होते सर्व पृथ्वी विषै अन्धकार होय है । तैसे ही सर्व जीवन की सत्ता एक होती तौ सुख-दुख एकै काल एक-सा सर्व जोवनिक होता। सो संसार विषै तो कोई जीव सुखी है कोई जीव दुःखी है। कोई रंक है कोई राजा है। कोई रोगो है कोई निरोगी है। कोई दुःख तैं रुदन करें है कोई सुख ते प्रफुल्लित है कोई कैसा दोखे । काहू के गर्मी है। कोई जीव मरि अन्य गति गया है। कोई आय उत्पन्न भया है। ऐसे सांसारिक दशा भिन्न-भिन्न देखिये है । तातें है एकान्तमत के धारणहारे भव्य ! तूं भले प्रकार विचार। जो एक सत्ता सर्व जीवनि की कैसे सम्भवे ? और सुनि- जो परमात्मा सर्व जगत् विषै व्यापक होय शुभाशुभ कर्म जीवन पै करावता तो परमात्मा के पुण्यपाप का बन्ध होता। तुम कहोगे परमात्मा के कर्म का बन्ध होता नहीं। तौ र पाप-पुण्य का बन्ध कौन के भया ? तुम कहोगे काहू को भी नहीं भया तौ पाप-पुण्य का फल वृथा हो गया। अर पाप-पुण्य का फल वृथा भये पापी जीव तो पाप बधावेंगे तजेंगे नांही कहेंगे पाप का फल तो कोई को होता नांहीं । अरु कोई
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