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भी मा.
महावता में दानवजाही
पली थी कब वह? 'वसुधैव कुटुम्बकम्' इस व्यक्तित्व का दर्शनस्वाद - महसूस इन आँखों को सुलभ नहीं रहा अब'''! यदि वह सुलभ भी है तो भारत में नहीं, महा-भारत में देखो! भारत में दर्शन स्वारथ का होता है।
हाँ-हाँ! इतना अवश्य परिवर्तन हुआ है
'वसुधैव कुटुम्बकम्' इसका आधुनिकीकरण हुआ है 'वसु' यानी धन-द्रव्य 'धा' यानी धारण करना आज धन ही कुटुम्ब बन गया है
धन ही मुकुट बन गया है जीवन का ! अब मछली कहती हैं माटी को"कुछ तुम भी कहो, माँ: कुछ और खोल दो इसी विषय को, माँ!"
सो मछन्नी की प्रार्थना पर
माटी कुछ सार के रूप में कहती है, कि "सुनो बेटा! यही कलियुग की सही पहचान हैं
12 :: मूक मारी