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भूख दो प्रकार की होती है. एक तन की, एक मन की। तन की तनिक है, प्राकृतिक भी, मन की मन जाने
कितना प्रमाण हैं उसका ?
वैकारिक जो रही,
वह भूख ही क्या भूत हैं भयंकर, जिसका सम्बन्ध भूतकाल से ही नहीं,
अभूत से भी हैं !
328 मूकमाटी
इसी कारण से
अभी तक प्राणी यह
अभिभूत जो नहीं हुआ स्व को
उपलब्ध कर |
जहाँ तक इन्द्रियों की बात है
उन्हें भूख लगती नहीं,
बाहर से लगता है कि
उन्हें भूख लगती है ।
रसना कब रस चाहती हैं,
नासा गन्ध को याद नहीं करती,
स्पर्श की प्रतीक्षा स्पर्शा कब करती ? स्वर के अभाव में
ज्वर कब चढ़ता है श्रवणा को ?
बहरी श्रवणा भी जीती मिलती है।
आँखें कब आरती उतारती हैं। रूप की स्वरूप की
ये सारी इन्द्रियाँ जड़ हैं,
जड़ का उपादान जड़ ही होता है,
जड़ में कोई चाह नहीं होती जड़ की कोई राह नहीं होती
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