________________
.
.:
रही बात माँ की "सोकभी-कभार किसी कारण वश माँ की आँखों में भी उत्तेजना उद्वेग आ सकता है, आता है:
आना भी चाहिए। किन्तु, आज तक माँ की गौरवपूर्ण गोद में गुस्से का घुस आना नमुना न सुना, न देखा
पला . . ... . ... ..: जिस गोद में सुख के क्षण सहज बीतते हैं शिशु के।
और देखो ना ! माँ की उदारता-परोपकारिता अपने वक्षस्थल पर युगों-युगों से"चिर से दुग्ध से भरे दो कलश ले खड़ी है क्षुधा-तृषा-पीड़ित शिशुओं का पालन करती रहती है
और भयभीतों को, सुख से रीतों को गुपचुप हृदय से चिपका लेती है पुचकारती हुई।
माँ को माँ के रूप में जब एक बार स्वीकार ही लिया,
476 :: मूक माटी