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''यह सब ऋषि-सन्तों की कृपा है, उनकी ही संबा में रत एक जघन्य सेवक हूँ मात्र, और कुछ नहीं।" और कुछ ही दूरी पर पादप के नीचे पाषाण-फलक पर आसीन नीराग साधु की ओर सवका ध्यान आकृष्ट करता है
कि तुरन्त सादर आकर प्रदक्षिणा के साथ सबने प्रणाम किया पूज्य-पाद के पद-पंकजों में। पादाभिषेक हुआ, पादोदक सर पर लगाया। फिर, चातक की भांति गुरु-कृपा की प्रतीक्षा में सब।
कुछेक पल रीतते कि गुरुदेव का मुदित-मुख प्रसाद बाँटने लगा, अभय का हाथ ऊपर उठा, जिसमें भाव भरा है'शाश्वत सुख का ताभ हो' । इस पर तुरन्त आतंकवाद ने कहा, कि "हे स्वामिन !
14:: मूक पार्टी