Book Title: Mook Mati
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 499
________________ फिर बार-बार उसकी क्या परख-परीक्षा ? इसलिए अब, मां की आँखों में मत देखो और अपराधी नहीं बनो अपरा 'धी' बनो, 'पराधी' नहीं पराधीन नहीं अपराधी न बना !" सेट का इतना कहना ही पर्याप्त था, कि संकोच-संशय समाप्त हुआ दल का और डूबती हुई नाव से दल कूद पड़ा धार में माँ के अंक में निःशंक हो कर शिशु की भाँति । तुरन्त शिशु को झेलती ममता की मूर्ति माँ-सम परिवार ने दल को झेला, परिवार के प्रति-सदस्य से दल के प्रति-सदस्य को आदर के साथ सहारा मिला और नव - जीव नव-जीवन पाये ! लो, अब हुआ" नाव का पूरा इवना पूक माटी :: +7

Loading...

Page Navigation
1 ... 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510