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सन्तान की प्रकृति शैतानी है, फिर भी सन्तान पर
"अधिक दीन-हीन मत बनो भाई,
जां
माँ की कृपा होती ही हैं
सन्तान हो या सन्तानेतर
यातना देना, सताना
माँ की सत्ता को स्वीकार कब था --"हमें बताना !"
यूँ कहते-कहते दल का मुख बन्द होता
कि
हरा-भरा तरु हैं
फूलों फलों दलों को ले
पथिक की प्रतीक्षा में खड़ा है
उससे
निमन्त्रित किया है
क्या वह उसे
जल पिता नहीं सकता ?
भला तुम ही बताओ !
Vidle S
' पर्व से केन्द्र की ओर
जब मति होने लगती है
अर्थ मे अर्थ की ओ तब गति होने लगती है' यूँ सोचता सेठ कहता है, कि
थोड़ी-सी छाँव की मँगनी
क्या हँसी का कारण नहीं है?
रस भोजन बना कर
विनय अनुनय के साच जिसने जिसे
मूक पाटी 475