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________________ 1 सन्तान की प्रकृति शैतानी है, फिर भी सन्तान पर "अधिक दीन-हीन मत बनो भाई, जां माँ की कृपा होती ही हैं सन्तान हो या सन्तानेतर यातना देना, सताना माँ की सत्ता को स्वीकार कब था --"हमें बताना !" यूँ कहते-कहते दल का मुख बन्द होता कि हरा-भरा तरु हैं फूलों फलों दलों को ले पथिक की प्रतीक्षा में खड़ा है उससे निमन्त्रित किया है क्या वह उसे जल पिता नहीं सकता ? भला तुम ही बताओ ! Vidle S ' पर्व से केन्द्र की ओर जब मति होने लगती है अर्थ मे अर्थ की ओ तब गति होने लगती है' यूँ सोचता सेठ कहता है, कि थोड़ी-सी छाँव की मँगनी क्या हँसी का कारण नहीं है? रस भोजन बना कर विनय अनुनय के साच जिसने जिसे मूक पाटी 475
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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