Book Title: Mook Mati
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 495
________________ कई सूक्तियाँ प्रेरणा देती पंक्तियाँ कई उदाहरण दृष्टान्त नयी पुरानी दृष्टियों और वह - दुर्लभतम अनुभूतियाँ देवता - दल ने सुनाईं। आतंकवाद के गले जैसे-तैसे उत्तर तो गईं, परन्तु तुरन्त पचतीं कैसे ! पर्याप्त काल अपेक्षित है पाचन कार्य के लिए, देखते-ही-देखते दृष्टि बदल सकती हैं, पर चाल नहीं, कषाय के वेग को संयत होने में समय लगता ही हैं ! लो, इतना समय कहाँ था ! घटना घटनी थी सो घटने को अब कुछ ही समय शेष हैं नाव की करनी जहाँ पर लिखा हुआ था. - टूब सब कुछ बल गई " .. "निःशेष ! मूक माटी 173

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