Book Title: Mook Mati
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 500
________________ और अनन्तवाद का श्रीगणेश ! सबसे आगे कुम्भ है मान-दम्भ से मुक्त, नव-नव व्यक्तियों की दो पंक्तियाँ कुम्भ के पीछे हैं परस्पर एक-दूसरों के आश्रित हो चल रही हैं एक माँ की सन्तान-सी तन निरे हैं "एक जान-सी। . कुम्भ के मुख से निकल रही हैं मंगल-कामना की पंक्तियाँ : 'यहाँ सबका सदा जीवन बने मंगलमय छा जावे सुख-छाँच, सबके सब टतें वह अमंगल-भाव, सबकी जीवन-लता हरित-भरित विहंसित हो गुण के फूल विलसित हों नाशा की आशा मिटे आमूल महक उठे . बस !" और इधर यह क्यों कूल में आकुलता दिखने लगी । 178 :: मूक मार्टी

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