Book Title: Mook Mati
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 493
________________ पल-पल पलटन की ओर नाव की दशा को देख कर मन-ही-मन मन्त्र का स्मरण आतंकवाद ने किया, कि देवता-दल का आना हुआ सविनय नमन हुआ, सादर सेवार्थ प्रार्थना हुई। 'स्मरण का कारण ज्ञात हो, स्वामिन् !' "कहा गया। आदेश की प्रतीक्षा में खिसकते हैं कुछेक पल, कि देयों का कहना हुआ नमन की मुद्रा में ही: "विद्याबलों की अपनी सीमा होती है स्वामिन् ! उसी सीमा में कार्य करना पड़ता है "हमें : कहते लज्जानुभव हो रहा है प्रासंगिक कार्य करने में पूर्णतः हम अक्षम हैं एतदर्थ क्षमाप्रार्थी हैं। वैसे, हे स्वामिन् ! तुमने तुलना तो की होगी अपने बल की उस बल के साथ : यहाँ जाते हो हमने अनुभूत किया कि हम मृग-शावक-से खड़े हैं मूक माटी :: ।

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