Book Title: Mook Mati
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 492
________________ हीरे की झगझगाहट ! अब सती अनचरा हो चलेगी व्यभिचारिणी के पीछे-पीछे। असत्य की दृष्टि में सत्य असत्य हो सकता है और असत्य सत्य हो सकता है, परन्तु क्या सत्य को भी नहीं रहा सत्यासत्य का विवेक ? क्या सत्य को भी अपने ऊपर विश्वास नहीं रहा ? भीड़ की पीठ पर बैठ कर क्या सत्य की यात्रा होगी अव ! नहीं"नहीं, कभी नहीं। जल में, थल में और गगन में यह सब कुछ असह्य हो गया है अव। घट में जब लौं प्राण इट कर प्रतिकार होगा इसका, ऐसी घटना नहीं घटेगी अपने ध्रुव-पथ से यह धारा नहीं हटेगी नहीं हटेगी ! नहीं हटेगी !" कहती-कहती कोपवती हो बहती-बहती क्षोभवती हो नदी नाव को नाच नचाती। 470 :: मूक माटी

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