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चारी के भाव जागते हैं, जाग हैं। योग मत करो, चोरी मत करो यह कहना केवल धमं का नाटक है उपरिल सभ्यता"उपचार ! .
: होर का शापी नहीं होते . . . जितने कि चोरों को पैदा करन वाले। तुम स्वयं चोर हो चारों को पालते हो और चोरों के जनक भी। सजन अपने दोषों को कभी छुपाते नहीं, छुपाने का भाव भी नहीं लाते मन में
प्रत्युत उद्घाटित करते हैं उन्हें। रावण ने सीता का हरण किया था जब सीता ने कहा था : यदि मैं इतनी रूपवती नहीं होती रावण का मन कलुषित नहीं होता
और इस रूप-लावण्य के लाभ में मेरा ही कर्मोदय कारण है, यह जो कर्म-बन्धन हुआ हैं मेरे ही शुभाशुभ परिणामों से ! ऐसी दशा में रावण को ही टोपी घोपित करना
HTH :: पृक मारी