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अपने भविष्य-भाल की और दूषित करना है!
नदी ने कहा तुरन्त, "उतावली मत करो !
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दल की दमनशील धमकियों से
सेठ के सिवा
परिवार का दिल हिल उठा,
उसके दृढ़ संकल्प को
पसीना - सा छूट गया ! उसकी जिजीविषा बलवती हुई
और वह
जीवन का अवसान
अकाल में देख कर.. आत्म-समर्पण के विषय में सोचने को बाध्य होता, कि
सत्य का आत्म-समर्पण और वह भी
असत्य के सामने कैसे ? हे भगवन् !
यह कैसा काल आ गया,
क्या असत्य शासक बनेगा अब ?
क्या सत्य शासित होगा ?
हाय रे, जौहरी के हाट में आज होरक-हार की हार ! हाय रे, काँच की चकाचौंध में मरी जा रही -.
पूक माटी 469