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जिस धारा से धारा भी लाल-सी हो गई हैएक विचार की दी सखियाँ आतंकवाद पर सष्ट हुई-सीं। सेठ जी के सिवा पर परिवार परंश हो पीड़ा का अनुभव कर रहा है।
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आचरण के साम्हनं आते ही प्रायः चरण थम जाते हैं
और आवरण के सामने आते ही प्रायः नयन नम जाते हैं, यह देही मतिमन्द कभी-कभी रस्सी को सर्प समझ कर विषयों से हीन होता है तो कभी सर्प को रस्सी समझ कर विषयों में लीन होता है। वह सब मोह की महिमा है इस महिमा का अन्त तब तक हो नहीं सकता स्वभाव की अनभिज्ञता जीवित रहेगी जब तक।
हाँ ! हाँ ! ऐसी स्थिति में भी धैर्य-साहस के साथ सबसे आगे हो सेठ का संघर्ष चल ही रहा है आतंक से।
462 :: पृक माटी