Book Title: Mook Mati
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 487
________________ ...::. और क्या ?... प्रलय का रूप धरता है पचन, कोए बढ़ा, पारा चढ़ा चक्री का बल भी जिसे देख कर चक्कर खा जाय बस, ऐसा चक्रवात है यह ! एक ही झटके में झट से दल के करों से जाल को सुदूर शून्य में फेंक दिया, सो' ऐसा प्रतीत हुआ कि आकाश के स्व सांनी :.:.:: स्वच्छन्द तैरने वाले प्रभापुंज प्रभाकर को ही पकड़ने का प्रयास चल रहा है और लगे इस झटके से दल के पैर निराधार हो गये, कई गालादे लेते हुए नाव में ही सिर के बल चक्कर खा गिरा गया दल, अन्धकार छा गया उसके सामने नेत्र बन्द हो गये हृदय-स्पन्दन मन्द पड़ गया, रबत्त-गति में अन्तर आने से मूळ आ गई। परन्तु, दक्षा की मूंछे तो मूर्छित नहीं, अमूर्छित ही तनी रहीं पूर्वचन् ! जोबन का अनुमान कैसे लगे प्राय प्रयाण-से कर गये । गफ माटी :: I

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