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निकट लगने लगी, साथ ही साथ उसकं मन में पर-पक्ष का सदाशय भी प्रकटने लगा।
फलस्वरूप उसके तन की शक्ति वह कुम्भ-सहित परिवार को । अदेसव-भाव से देखने लगी, उसके मन की शक्ति वह अपने आप को क्रोधानल से सेंकने लगी,
और उसकी वचन-शक्ति तो पूरे माहौल के सामने अपने घुटने टेकने लगी, परन्तु उसकी वंचन-शक्ति वह अभी मिटी नहीं है ज्यों-की-त्यों बलवती वही पुरानी टेक लगी है तभी "तो". आतंकवाद अपने हाथों में एक ऐसा जाल ले जिसमें बड़ी-बड़ी मालियाँ अनायास फंस सकती हैं परिवार के ऊपर फेंकने को है, कि धरती के उपासक पवन में यह देखा नहीं गया आर
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क. गाटा