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डी विजय के पक्ष में बाधक अन्धकार का कार्य करती है.
अब, आतंकवाद का
नगभग लगने लगी ::..:: . . शकला
एईसी मृग मरीचिका नहीं धोखा नहीं ! भाग्य साथ देता हुआ-सा । और मौके का मूल्यांकन हुआ नौका को और गति मिनी पवन का ओंका भर प्रतिकूल न हो, बस
यही एक भावना ले । आखिर आतंकवाद आ मार्गावरोधी बन कर परिवार के सम्मुख खड़ा हो कहाहाहट के साथ कहता है :
'अव पार का विकल्प त्याग दो न्याग-पत्र दो जीवन को पाता का परिचय पाना है तुम्हें पाखण्ड पाप का यही पाक होता है'
और अन्धाधुन्ध पत्थरों की वर्षा
पग्विार के ऊपर होने लगी। "स्वागत मंरा हो मनमोहक विनासिता मुझे मिलें अच्छी वस्तु
Mil:: मृवः पार्टी