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फिर कभी-कभी उसे
दावा के रूप में लपलपाती प्रकट होती देख
अपने अजेय बल से
अग्नि को लावा का रूप दे
उसे पाताल तक पहुँचाया है ।
और
अभी भी उस पर शासन चल रहा हैं
फिर भला,
आज तुम्हें यह क्या हुआ है हे माँ! जलदेवता !
हमें दे बता ।
हमें क्या पता,
इतना परिवर्तन तुम में हुआ है !"
4.58 मूक माटी
मूल के अभाव में चूल की गति क्या होगी
तुम्हारा !
इस पर नदी कहती हैं अब,
कि
"जिन्हें डुबोने के लिए कहते हो उनके अभाव में यहाँ
अभाव के सिवा, बस शेष कुछ भी नहीं मिलेगा । तरवार के अभाव में
म्यान का मूल्य ही क्या ?
भोक्ता के अभाव में
भोग - सामग्री से क्या ? जो
है धरती की शोभा
कुछ इन से ही है
और इन जैसे सेवाकार्य रतों से ।