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वही छल-बल नही उछाल है काले-काले वही वाल हैं क्रूर काल का वही भात है बड़ी नशा हैं वही दशा है कॉप रही हैं दिशा-दिशा है वही रसना है वही बसना हैं किसी के भी रही यश ना है सुनी हुई जो वही ध्वनि है वही वही सुन ! वही धुन है I
वही श्वास है अविश्वास है वही नाश है अट्टहास हैं वही ताण्डव नृत्य है वही दानव कृत्य वही आँखें हैं सिंदूरी हैं भूरि-भूरि जो घूर रही हैं बही गात है वही माथ है
है
वही पाद है वही हाथ है घात - घात में वही साथ है, गाल वही है अथर वही हैं लाल वही हैं रुधिर नही है भाव वही हैं डॉब वही है सब कुछ वहीं नया कुछ नहीं जिया वही है दया कुछ नहीं ।
456: मूकमाटी
माct : आर्य की सुविधा
और प्रारम्भ होती है नदी से आतंकवाद की प्रार्थना :
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ओ माँ जलदेवता !
!
हमें यह दे बता अपराधी को भी क्या
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