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गिरिवों में मेस-गिरि सागरों में क्षीर-सागर मरणों में वीर मरण मुक्ताओं में मत्स्य-मुक्ता उत्तम माने जाते हैं,
वैसे
गुणों में गुण कृतज्ञता है, .... जसे कंजला से संशोभित
कुम्भ को देख कर एक महामत्स्य मुदित हो बहुमूल्य मुक्ता-मणि प्रदान करता हैं कुम्भ को। 'यह तुच्छ सेवा स्वीकृत हो स्वामिन् !! कह कर जल में लीन होता है वह । इस मुक्ता की बड़ी विशेषता हैं कि जिस सज्जन को यह मिलती हैं वह अगाध जल में भी अबाध पथ पा जाता है
और यही हुआ तुरन्त ! भंवरदार धार को भी अनायास पार करता हुआ परिवार सहित कुम्भ मन्द मुस्कान के साथ एक सूक्ति की स्मृति दिलाता है सेठ को, कि 'बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख'
और यह फल त्याग-तपस्या का है सेठ जी ! कुम्भ के आत्म-विश्वास से
4:3-4 :: मूक माटी