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जब आग की नदी को पार कर आये हम
और
और सुनो ! 'ध' के स्थान पर
'थ' के प्रयोग से
तीरथ बनता है।
शरणागत को तारे सो 'तीरथ' !
साधना की सीमा - श्री से
हार कर नहीं,
प्यार कर, आये हम
फिर भी हमें डुबोने की क्षमता रखती हो तुम
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धरती इसे शब्द का भी भाव विलोम रूप से यहीं निकलता हैधरती ती ''र''ध''
452: मूकमाटी
वानी,
जो तीर को धारण करती है
या शरणागत को
तीर पर धरती हैं वही 'धरती' कहलाती है
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फिर भला अब हमें कैसे डुबो सकती हो तुम ! और यह भी ध्यान रहे कि अब हमें
बहा न सकोगी तुम किसी बहाने बहाव में
बह न सकेंगे हम !