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देखते-देखते सामने से ही एक विशालकाय हाथी बहता-बहता आया जिसकी पीट पर बैठा है एक प्रौढ़ सिंह भीषण भविष्य से भयभीत ! और भंवर में फंस कर एक-दो बार भ्रमता भँवर के उदर में तिरोहित हुआ, सबल हो या निर्बल जहाँ पर किसी का बल काम नहीं कर रहा है सब बलों का बलिदान !
घटती घटना को देख कर परिवार का धैर्य कहीं घट न जाय,
और उसका मन कहीं ध्रुव से हट न जाय, यूँ सोचते हुए-से कुम्भ ने नदी को ललकारा : "अरी पाप-पाँव वाली, सुन ! यह परिवार तो पार पर है मझधार में नहीं, जिसने धरती की शरण ली है धरती पार उतारती है उसे यह धरती का नियम है व्रत !
पूक माटी :: 451