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________________ जब आग की नदी को पार कर आये हम और और सुनो ! 'ध' के स्थान पर 'थ' के प्रयोग से तीरथ बनता है। शरणागत को तारे सो 'तीरथ' ! साधना की सीमा - श्री से हार कर नहीं, प्यार कर, आये हम फिर भी हमें डुबोने की क्षमता रखती हो तुम 2 धरती इसे शब्द का भी भाव विलोम रूप से यहीं निकलता हैधरती ती ''र''ध'' 452: मूकमाटी वानी, जो तीर को धारण करती है या शरणागत को तीर पर धरती हैं वही 'धरती' कहलाती है I फिर भला अब हमें कैसे डुबो सकती हो तुम ! और यह भी ध्यान रहे कि अब हमें बहा न सकोगी तुम किसी बहाने बहाव में बह न सकेंगे हम !
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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