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________________ फिर कभी-कभी उसे दावा के रूप में लपलपाती प्रकट होती देख अपने अजेय बल से अग्नि को लावा का रूप दे उसे पाताल तक पहुँचाया है । और अभी भी उस पर शासन चल रहा हैं फिर भला, आज तुम्हें यह क्या हुआ है हे माँ! जलदेवता ! हमें दे बता । हमें क्या पता, इतना परिवर्तन तुम में हुआ है !" 4.58 मूक माटी मूल के अभाव में चूल की गति क्या होगी तुम्हारा ! इस पर नदी कहती हैं अब, कि "जिन्हें डुबोने के लिए कहते हो उनके अभाव में यहाँ अभाव के सिवा, बस शेष कुछ भी नहीं मिलेगा । तरवार के अभाव में म्यान का मूल्य ही क्या ? भोक्ता के अभाव में भोग - सामग्री से क्या ? जो है धरती की शोभा कुछ इन से ही है और इन जैसे सेवाकार्य रतों से ।
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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