________________
मूल्य-हीन, उपेचित देख चदले के भाव से भरा भीतर से अलता घुटता स्वर्ण कलश !
लो. परिवार सहित सेठ को
समाप्त करने का पड्यन्त्र ! दिन और समय निश्चित होता है, आतंकवाद को आमन्त्रित करने का
यह बात निश्चित है कि मान को टीस पहुँचने से ही, आतंकवाद का अवतार होता है । अति-पोषण या अतिशोषण का भी यही परिणाम होता है,
मुक माटी
तक
जीवन का लक्ष्य बनता है, शोध नहीं, बदले का भाव प्रतिशोध !
जो कि
महा- अज्ञानता है, दूरदर्शिता का अभाव पर के लिए ही नहीं,
अपने लिए भी घातक !
इस विषय में गुप-चुप मन्त्रणा होती है स्वर्ण-कतश की अपने सहचरों-अनुचरों से । इस असभ्यता की गन्ध नहीं आती परिवार के किसी सदस्य को, सभ्यों की नासिका वह भूखी रह सकती है, पर
भूल कर स्वप्न में भी दुर्गन्ध की ओर जाती नहीं ।