________________
सपरिवार गज- समाज को उदासी में डूबा देख आपे में आ सर्पों ने कहा :
" क्षमा करें ! क्षमा करें !
क्षमा चाहते हम !
वैसे,
दो टूक बोलते नहीं हम
भूल-चूक की बात निराली है, पूरा आशय प्रकट नहीं हो सका। शेष सुन लो, सुनाते हम टूटे-फूटे शब्दों में कि
जितने भी पद-वाले होते हैं और जो
प्रजापाल आदिक
प्रामाणिक पदों पर आसीन कराये गये हैं,
वे सब ऐसे ही होते हैं ऐसी बात नहीं है I
कुछ पद ऐसे भी होते हैं जिन पदों की पूजा के लिए यह जीवन भी तरस रहा था सुचिर काल से कब से
आज घड़ी आ गई वह हरस रहा है हृदय यह" और सर्वप्रथम हर्षाश्रुपूरित लोचनों से पूज्य-पदों का अभिषेक हुआ शत शत प्रणिपात के साथ ।
फिर, नाग और नागिन की फणायें पूरी खुल
मुक्त माटी : 495