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कुम्भ का कहना हुआ : "नहीं नहीं नहीं.. लौटना नहीं ! अभी नहीं कभी भी नहीं क्योंकि अभी आतंकवाद गया नहीं, उससे संघर्ष करना है अभी वह कृत-संकल्प है अपने ध्रुव पर दृढ़।
जब तक जीवित है आतंकवाद शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती वह, ये आँखें अब आतंकवाद को देख नहीं सकतीं, ये कान अब आतंक का नाम सुन नहीं सकते, यह जीवन भी कृत-संकल्पित हैं कि उसका रहे या इसका यहाँ अस्तित्व एक का रहेगा, अब विलम्ब का स्वागत मत करो नदी को पार करना ही हैं कुम्भ के भाग में क्या । विफलता-शून्यता लिखी है कुम्भ के त्याग में क्या । विकलता-न्यूनता रही है ? शिथिल विश्वास को शुद्ध श्वास मिलेगा
और पकिल श्वास को समृद्ध वास मिलेगा
मूक माटी :: 441