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पर-सम्पदा मिलने पर भी उनका मैंने स्वप्न में भी
ना लीं। और अपनी उदारता दिखाने किसी स्वार्थ या यश-लोषणावश दूसरों को उन्हें न दी तभी तो हमें सन्तों ने सार्थक संज्ञा दी"नाली ! नदी !
हमसे विपरीत चाल चलनेवाले दीन होते हैं। कुल शिथिलाचारी साधुओं को 'बहता पानी और रमता जोगी' इस सूक्ति के माध्यम से आई -बोध शिशु है इससे बढ़कर भला और कौन-सा वह आदर्श हो सकता है संसार में : इस आदर्श में अब अपना मुख देख लो
?
और
पहचान लो अपने रूप-स्वरूप को !"
इच्छंखला जडाशया अपनी ही प्रशंसा में इचीनदी की बातें सुन उत्तेजित हुए बिना
44 :: मूब: माटी