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परन्तु ! जल में उलटी क्रान्ति आ गई जड़ और जंगम दो तत्त्व हैं दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैंजंगम को प्रकाश मिलते ही यथोचित गति मिलते ही बिकास ही कर जाता है वह जब कि जड़ ज्यों-का-यों रह जाता। जड़ अज्ञानी होता है एकान्ती ही होता है क्रूटस्थ होता है" त्रस्त ! स्वस्थ नहीं हो सकता वह। जलचरों की प्रवृत्ति से उलटी-पलटी वृत्ति से जल से भरी उफनती नदी
और जलती हुई कहती है, कि "मेरे आश्रित हो कर भी मेरे से प्रतिकूल जाते हो ! जीवन जीना चाहते हो संजीवन पीना चाहते हो
और निर्वल बालक होकर भी माता को भूल जाते हो : जाओ : जाओ। दुःख पाओगे, पाओगे नहीं मृदु प्यार कहीं, पीओगे पश्चाताप की घुट ही पीयूष की स्मृति जलाएगी तुम्हें !
भूचरों से मिले हुए हो धृतं खलों से छले हुए हो
446 :: मृक माटी