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अन्तिम-शीत अनुभूत हुआ परिवार को इस समय।
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काया की प्राकृत ऊष्मा खोती जा रही है रक्त- की गतिशीलजा... बिरक्त होती जा रही है हस्त-पाद निष्क्रिय हो गये दन्त-पंक्तियाँ कटकटाने लगीं और कुछ नदी में भीतर आना हुआ कि छोटी-बड़ी मछलियाँ जल से ऊपर उछलती सलील क्रीडा कर रही हैं, कुटिल विचरण वाले विषधरों की पतली-पतली पूछे अनायास लिपटने लगीं परिवार की वर्तुली पिंडरियों से। संकोच-शीलवाले भी कई कछुवे भी स्वच्छन्द हो परिवार की मूदुल-मांसल जंघाएँ छू-छ कर
ठूमन्तर होने लगेंगे जिनके व्याघ्र-सम भयानक जबड़ों में बड़ी-बड़ी टेढ़ी-मेढी तीखी दन्त-पंक्तियाँ चमक रही हैं, जिनकी रक्त-लोलुपी लाल रसना बार-बार बाहर लपक रही है,
444 :: मूक पाटी