________________
बचना चाहता हूँ बचता हूँ यथा-शक्य
और
..
:: : .. ...ज मा हो, नो .
बचाना चाहता हूँ औरों को बचाता हूँ यथा-शक्य ।
यहाँ
बन्धन रुचता किसे ?
मुझे भी प्रिय है स्वतन्त्रता" | लो, अब की बार लवणभास्कर चूरण-सी पंक्तियाँ काम कर गई,
और कुम्भ के संकेतानुसार सिंह-कदि-सी अपनी पतली कटि में कुम्भ को बाँध कर कूद पड़ा सेठ नदी की तेज धार में। तुरन्त परिवार ने भी उसका अनुकरण किया, धरती का सहारा छूट गया पद निराधार हो गये काटे में बंधी रस्सी ही त्राण है, प्राण है, इस समय !
और कुम्भ महायान का कार्य कर रहा है सब-का-सब जल-मग्न हो गया है मात्र दिख रहे ऊपर मुख-मस्तक।
मूक माटी :: 443