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अनुकूलता भी अपक्षित है केवल भोग-सामग्री ही नहीं।
इस भीषण प्रलयकालीन स्थिति में भी परिवार का परिरक्षण अविकल चलता रहा, गुणग्राही गज-गण से। 'बादल दल छंट गये हैं काजल-पत कट गये हैं वरना, लाली क्यों फूटी है सुदूर"प्राची में !
और
परिवार खड़ा है नदी-तट पर जा। वर्षा के कारण नदी में नया नीर आया है नदी वेग-आवेगवती हुई है संवेग-निर्वेग से दूर उन्मादवाली प्रमदा-सी ! परिवार के सम्मुख अब गम्भीर समस्या आ खड़ी है, धीरे-धीरे उसकी गम्भीरता-गुरुता भीरता से घिरती जा रही है।
और "लो ! परिवार का मन कह उठा, कि चलो ! लौट चलें यहाँ से। लौटने का उद्यम हुआ, कि
4400 :: भूक मारी