Book Title: Mook Mati
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 461
________________ क्रूक भी मूक हो गयी, मेघों को क्रोधित मदोन्मत्त करनेवाली बीच-बीच में बिजली कौंधने लगी मान-मर्यादा से उन्मुक्त चपला अबला - सी 1 और मूसलाधार वर्षा होने लगी । छोटी-बड़ी बूँदों की बात नहीं, जलप्रपात -सम अनुभवन है यह धरती डूबी जा रही है जल में जलीय सत्ता का प्रकोप चारों ओर घटाटोप है। दिवस का अवसान कब हुआ पता नहीं चल सका, तमस का आना कब हुआ कौन बताये किससे पूछें ? ! और बादलों का घुमड़न घुटता रहा बिजली का उमड़न चलता रहा रुक-रुक कर ओला वृष्टि होती गई शीत - लहर चलती गई प्रहर-प्रहर ढलते गये ऐसी स्थिति में फिर भला निद्रा ओ ! आती कैसे और किसे इष्ट होगी वह ? फलानुभूति - भांग और उपभोग के लिए काल और क्षेत्र की .. मूकमाटी 439

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