________________
"
निहारता रहा निन्दा की नियति से। एक बार और उसका डर भर उठा है उद्विग्नता से-उत्पीड़न से और पराभव से उत्पन्न हुई
उच्छृखल उष्णता से। इसके सिवा
और क्या कर सकता है: :: :: :: :: :: सबलों के सम्मुख बलहीन वह मुख !
और साधित मन्त्रों से मन्त्रित होते हैं सात नींबू ! प्रति नींबू में आर-पार हुई है सई काली डोर बँधी हैं जिन पर । फिर, फल उछाल दिये जाते हैं शून्य आकाश में काली मेघ-घटाओं की कामना के साथ । मन्त्र-प्रयोग के बाद प्रतीक्षा की आवश्यकता नहीं रहती हाथों-हाथ फल सामने आता है यह एकाग्रता का परिणाम है। मन्त्र-प्रयोग करने वाला सदाशयी हो या दुराशयी इसमें कोई नियम नहीं है। नियन्त्रित-मना हो बस ! यही नियम है, यही नियोग, और यही हुआ।
मूक पाटी :: 437