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सादर उट खड़ी हुई जिनमें सुरक्षित निहित सब मणियों में मंजुल मौलिक अनन्य दुर्लभ
स-सौंमा बुद्धिमानी मणियों का अर्पण हुआ। और धन्य-धन्यतम माना जीवन को सर्प-समाज ने। सों का नमन हुआ दों का बमन हुआ बाहर मार-पीट का दर्शन
भीतर प्यार-मीत चलता रहा। मृदुता का मोहक स्पर्शन यह एक ऐसा मौलिक और अलौकिक अमूर्त-दर्शक काव्य का श्राव्य का सृजन हुआ, इसका सृजक कौन है वह, कहाँ है, क्यों मौन है वह ? लाघव-भाव वाला नरपुंगव, नरपों का चरण हुआ !
वहीं से लपक-लपक कर बार-बार आतंकवाद झाड़ियों से झाँकता रहा और आशातीत इस घटना को
433 :: मूक माटी