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युगों-युगों का इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस वंश-परम्परा ने आज तक किसी कारणवश किसी जीवन पर भी पद नहीं रखा, कुचला नहीं क्योंकि अपद जो रहे हम ! यही कारण है कि सन्तों ने बहुत सोच-समझ कर हमारा सार्थक नामकरण किया है
हाँ ! हाँ ! हम पर कोई पद रखते हमें छेड़ते "तो". हम छोड़ले नहीं उन्हें। जघन्य स्वार्थसिद्धि के लिए किसी को पद-दलित नहीं किया हमने, प्रत्युत, जो पद-दलित हुए हैं किसी भाँति, उर से सरकते-सरकते उन तक पहुँच कर उन्हें उर से चिपकाया है, प्रेम से उन्हें पुचकारा है,
उनके घावों को सहलाया है। अपनी ममता-मृदुता से कण-कण की कथा सनी है, अणु-अणु की व्यथा हनी है।
मुक पाटी :: 43:4