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जीवन का ध्येय नहीं हैं, देह - नेह करने से हीं आज तक तुझे विदेह-पद उपलब्ध
दयाहीन दुष्टों का
दयालीन शिष्टों पर
नहीं हुआ !
आक्रमण होता देख
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तरवारों का वार दुवार है इस वार से परिवार को बचाना भी अनिवार्य हैं, आर्यों का आन कार्य " यूँ सोचता हुआ गज-दल परिवार को बीच में करता हुआ चारों ओर से घेर कर खड़ा हुआ ।
गजगण की गर्जना से गगनांगन गूँज उठा, धरती की धृति हिल उठी, पर्वत श्रेणी परिसर को भी
परिश्रम का अनुभव हुआ, निःसंग उड़ने वाले पंछी दिग्भ्रमित भयातुर हो, दूसरों के घोंसलों में जा घुसे, अजगरों की गाढ़ निद्रा झट-सी टूट गई,
जागृतों को ज्वर चढ़ गया, मृग-समाज मार्ग भूल कर
मृगराज के सम्मुख जा रुकी, बड़ी बड़ी बाँबियों "तो"
मूकमाटी 429