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गन्धसेवी होने मात्र से भ्रमर और मक्षिका एक नहीं हो सकते। सुभि से भरे फूलों को छोड़ मल-मूत्र-श्लेष्म-मांस आदि आदि पदार्थों पर भ्रमर कभी बैटता नहीं, जहाँ पर मक्षिका फँस कर मर जाती है मतिमन्दा।
आज आएगा आतंकवाद का दल, आपत्ति की आंधी ले आधी रात में।
और इधर, स्वर्ण-कलश के सम्मुख बड़ी समस्या आ खड़ी हुई कि अपने में ही एक और असन्तुष्ट-दल का निर्माण हुआ है। लिये निर्णय को नकारा है उसन अन्याय-असभ्चता कहा है इसे, अपने सहयोग-समर्थन को
स्वीकृति नहीं दी हैं। न्याय की वेदी पर अन्याय का ताण्डव-नृत्य मत करो, कहा है उस दल की संचालिका हैस्फटिक की उजली झारी
वह
प्रभाविता हैं माटी के कुम्भ से ।
पृक माटी : 114