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anter :- माdिemy YE
कट समय तक शान्न मान का शासन चलता रहा, फिर सौम्य-भावां से भग कम्प ने स्वयं स्वर्ण-कलशी से कम
कि, "ओरी कलशी ! कहाँ दिख रही है तू
कल''सी ? केवल आज कर रही है कल की नकल-सी ! तृ रहीं न कलशी
''कल-सी । कल-कमनीयता कहाँ है वह तर गालों पर ! लगता है अवरों की वह मधारम सुधा कहीं गई हैं निकल-सी ! अकल के अभाव में पड़ी है काया अकेली कला-विहीन चिकल-सी छोटी-सी ने शकल-सी आग कलशी ! कहाँ दिख रही है तू
कलसी ?"
व्यंग्यात्मक भाषा कम्भ के मुख से मुन अपने को उपहास का पात्र,
भूक मारी :: 117