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जब भ्रम टला सब श्रम टला तन स्वस्थ हुआ मन मस्त हुआ।
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अभी चलना है अग्रिम पथ भी सो परिवार उठ चल पड़ा कि पीछे से गरजती हुई आई एक ध्वनि--जो जन-दल मुख से निकली, कानों को बहरे करती हिंसोपजीविका आक्रामिका है। "अरे कातरो, ठहरो ! कहाँ भागोगे, कब तक भागोगे ? काया का राग छोड़ दो अब। शतको,
.:. ..: :: पाप का फल पाना है तुम्हें धर्म का चोला पहन कर अधर्म का धन छुपाने वालो ! सही-सही बताओ, कितना धन लूटा तुमने कितने जीवन टूटे तुमसे ! मन में वह सब स्मरण करी क्षण में अब तुम मरण वरो !' और". परिवार ने मुड़ कर देखा तो दिखा आतंकवाद का दल हाथियों को भी हताहत करने का वला ! जिनके हाथों में हथियार हैं, बार-बार आकाश में वार कर रहे हैं, जिससे ज्वाला वह बिजली की कौंध-सी उठती, और
125 :: मुक माटी