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युगों से वंश-परम्परा से वंशीधर के अधरों का प्यार - पीयूष मिला जिसे वह बाँस पंक्ति
मांसल वाह-वाली
अमंगल वारक
मंगल-कारक, तोरण द्वार का अनुकरण करती
कुम्भ के पदों में प्रणिपात करती है
स्वयं को धन्य-तमा मानती हैं। और
दृग - विन्दुओं के मिष
हंस- परमहंसों-सी भूरि-शुभ्रा वंश - मुक्ता की वर्षा करती है।
एक माटी
आप श्री सुविसिागर जी फाटल
इसी बीच, इधर मांसाहारी सिंह से सताया
अभय की गवेषणा करता हुआ भयभीत हाथियों का एक दल
यकायक
अपनी ओर आता हुआ देख
परिवार ने कहा यूँ ।
'डरो मत, आओ भाई',
और
प्रेम-भरी आँखों से बुलाया उसे । वाह, वाह ! फिर क्या कहना ! परिवार के पदों में दल ने अपूर्व शान्ति का श्वास लिया,
माँ के अनन्य अंक में
निःशंकला का संवेदन करता शिशु-सा ।
फिर,