________________
पीछे चल रहा है पाप-भीरु परिवार ! बीच-बीच में पीछे मुड़ते सब पर-गोपुर पार कर गये,
फिर तीन हो गये, पनी बनी में जा ! उत्तुंग-तम गगन चूमते तरह-तरह के तरुवर छत्ता ताने खड़े हैं. श्रम-हारिणी धरती है हरी-भरी लसती है धरती पर छाया ने दरी बिछाई है। फूलों-फलों पत्रों से लदे लघु-गुरु गुल्म-गुच्छ श्रान्त-श्लथ पथिकों को मुस्कान-दान करते-से। आपाद-कण्ट पादपों से लिपटी ललित-ललिकाएँ वह लगती हैं आगतों को बुलाती-लुभाती-सी,
और
अविरल चलते पथिकों को विश्राम लेने को कह रही हैं। सो"पूरा परिवार अभय का श्वास लेता जन्तु-शून्य प्रासुक धरती पर बैठ जाता कुछ समय के लिए।
स्वेद से लथ-पथ हुआ परिवार का तन, खेद से हताहत हुआ, परिवार का मन, एक साथ शान्ति का बेदन करते शीतल पवन का परस पा कर।
मूक माटी :: 423