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अतः अवसर का नाम ना आग्रह की दृष्टि से मत दखी, मान-यान से अब नीचे उतर आओ तुम ! जो वर्धमान हो कर मानातीत हैं. उनके पदों में प्रणिपात करो अपार पाप-सागर से तर जाओ तुम !"
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लो, झारी का प्रभाव कब पड़ना धा रौद्र-कर्मा, वर्ण-कलश पर ! सीता की बन्धन-मुक्ति को ले अमन्द-मति मन्दोदरी का सम्बोधन i .... प्रभावक कहीं रहा. रावण का गारव लाधव कहाँ हुआ ? प्रत्युत, उबलते तेत के कद्दाव में शीतल जल की चार-पाँच बूँदें गिरी-सी स्वर्ण-कलश की स्थिति हो आई। अनियन्त्रित क्षोभ का भीषण दर्शन ! फिर, वड़ी उत्तेजना के साथ स्वर्ण-कलश का गर्जन ! "एक को भी नहीं छोड़े, तुम्हारे ऊपर दया की वर्षा सम्भव नहीं अब, प्रन्नय-काल का दर्शन तुम्हें करना है अभी।" अब क्या पूछना है !
मृक पाटी :: 21