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फिर कब"इसशोक-सिलसिला का अन्त''वह : जव काल-प्रवाह का सुदूरखिसकना हो तब कहीं। अशोक-वृक्ष की श्यामल छाँव मिले !
कुछ ही दिनों में कुछ-कुछ नहीं सब कुछ अच्छा, अतुच्छा हुआ, दाह की स्वच्छन्दता छिन्न-भिन्न हुई इस सफल प्रयोग से।
कवि की स्वच्छ-भावों की स्वच्छन्दता-ज्यों .... तशाह के छन्दों को देख कर . :
अपने में ही सिमट-सिमट कर
मिट जाती है, आप ! शास्त्र कहते हैं, हम पढ़ें औषधियों का सही मूल्य रोग का शमन है। कोई भी औषधि हो हीनाधिक मूल्य वाली होली नहीं, तथापि श्रीमानों, धीमानों की आस्था इससे विपरीत रीत बाती हुआ करती है,
और जो बहुमूल्य औषधियों पर ही टिकी मिलती है। सेठ जी इस बात के अपवाद हैं।
408 :: मूक माटी