________________
कहाँ तक कहें
और इधर युवा-युवतियों के हाथों में भी इस्पात के ही कड़े मिलते हैं। क्या यही विज्ञान है ? क्या यही विकास है? बस सोना सो गया अब लोहा ते लोहा लो'"हा !
सुनो ! सुनो ! कलि की महिमा और सुनो ! चांदनी की रात्रि में चन्द्रकान्त मणि से झरा उज्ज्वल शीतल जल ले मलयाचल के चन्दन घिस-घिस कर ललाट तल नाभि पर लेप किया जाना वरदान माना है दाह-रोग के उपशमन में। यह भी सुना, अनुभव भी है. कि तत्कालीन ताजे शुद्ध-सुगन्धित घृत में अनुपात से कपूर मिला-घुला कर हलकी-हलकी अंगुलियों से मस्तक के मध्य, ब्रह्म रन्ध्र पर
और मर्दन-कला कुशलों से रोगन-आदिक गुणकारी तैन
मूक पाटी :: .I13